तुलसी पूजा ,तुलसी देवी को किस दिशा में लगाना उत्तम होता है ? तुलसी विवाह : कल्कि मंत्र:

आदि शंकराचार्य ने साधारण गृहस्थों को पाँच देवताओं की पूजा की महत्ता को समझाया। इन पंचदेवताओं में भगवान विष्णु, भगवान शिव, भगवान गणेश, भगवान सूर्य और शक्ति (जो दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती जैसे रूपों में प्रकट होती हैं) शामिल हैं। इन देवताओं की पूजा करने से श्रद्धा, विश्वास और समर्थता में वृद्धि होती है। यह पूजा यश, पुण्य, मानसिक शांति, और सम्मान की प्राप्ति कराती है। व्यक्ति में आत्मविश्वास और साहस का विकास होता है, उसकी बुद्धि और विवेक बढ़ते हैं, और वह आरोग्य का सुख भी प्राप्त करता है।

शास्त्रों के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर में तुलसी का पौधा लगाना चाहिए और पूर्णिमातिथि और विशेष उपलक्ष्यों में उनकी पूजा करनी चाहिए।


 शास्त्र के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को घर में तुलसी का पौधा लगाना चाहिए। तुलसी अगर किसी शुभ दिन और शुभ समय में लगाई जाए, तो विशेष फलदायी साबित होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं तुलसी को सही दिशा में रखने पर ही उसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिलते हैं।. ऐसी मान्यता है कि तुलसी की नियमित पूजा करने से व्यक्ति को मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं तुलसी को किस दिशा में लगाना उत्तम होता है.

शुभ दिशा में लगाने से मिलता है विशेष फल।

वास्तु जानकारों का मानना है कि तुलसी के पौधे को सही दिशा में लगाने से ही घर में खुशियों का वास होता है. अगर आपने इसे गलत दिशा में रख दिया, तो आप पर बड़ा सकंट भी आ सकता है।  कहते हैं कि गलत दिशा में रखा तुलसी का पौधा घर में निगेटिव एनर्जी फैला सकता है. इससे शारीरिक, मानसिक और आर्थिक हानि तीनों का सामना करना पड़ता है।

इस दिशा में लगाएं तुलसी का पौधा।

वास्तु शास्त्र के अनुसार तुलसी के पौधे को पूर्व दिशा में लगाना उत्तम माना गया है. अगर आपके घर में पूर्व दिशा में जगह नहीं है, तो फिर आप उत्तर या फिर उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) का चुनाव भी कर सकते हैं। इस दिशा में तुलसी का पौधा लगाने से घर में सकारात्मकत ऊर्जा का वास होता है. इसके साथ ही मां लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहती है।

इस दिशा में भूलकर न लगाएं तुलसी।

मान्यता है कि तुलसी का पौधा तभी लाभप्रद होता है जब उसे सही दिशा में लगाया जाता है. इसलिए घर की दक्षिण दिशा में भूलकर भी तुलसी का पौधा नहीं लगाना चाहिए.दक्षिण दिशा को पितरों की दिशा माना गया है. ऐसे में इस दिशा में तुलसी का पौधा लगाने से फायदे की जगह नुकसान होने लगता है।

तुलसी पूजा।

तुलसी पूजा भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में महत्वपूर्ण है और इसे विशेष रूप से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाना जाता है, जिसे तुलसी विवाह भी कहा जाता है। यह पूजा हिन्दू धर्म में विष्णु भगवान की पत्नी तुलसीदेवी को समर्पित है और इसे करने से भक्तों को सुख, समृद्धि, और शांति की प्राप्ति होती है। यहां तुलसी पूजा की सामान्य विधि दी जा रही है:

सामग्री:

शुद्ध तुलसी पौधा

पूजा के लिए सामान (दीपक, अगरबत्ती, रूपा, कपूर, सुपारी, इलायची, लौंग, गुड़, दूध, गंगाजल, तुलसी दाल)

तुलसी पूजा की विधि:

पूजा के लिए एक शुद्ध स्थान का चयन करें जो पूजा के लिए उपयुक्त हो।

पूजा का समय सुबह या शाम का उचित है।

अपने हाथों को धोकर शुद्ध करें और पूजा के लिए बैठें।

तुलसी पौधे की सीधी और सुंदर शाखा को छोड़ने के लिए उसकी पूजा करें।

तुलसी पौधे के चारों ओर रंग बटोरने के लिए कुमकुम या रोली का उपयोग करें।

तुलसी पौधे की मूली या राख का तिलक लगाएं।

अब अगरबत्ती और दीपक जलाएं।

पूजा के दौरान मंत्रों का जाप करें, जैसे कि "ओम श्री तुलस्यै नमः" या अन्य तुलसी मंत्र।

तुलसी स्तुति मंत्र।

देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः

नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।

धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।

तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।

तुलसी नामाष्टक मंत्र:

वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।

पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।

एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।

य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।

तुलसी पौधे को दूध, गंगाजल, रूपा, गुड़, सुपारी, इलायची, लौंग, अगरबत्ती, दीपक, और कपूर से पूजें।

पूजा के बाद प्रसाद को तुलसी पौधे को चढ़ाएं और फिर उसे पूजा स्थल पर ही रखें।

यहीं एक सामान्य तुलसी पूजा की विधि है, लेकिन यह विधि क्षेत्र और स्थान के आधार पर थोड़ी विभिन्नता दिखा सकती है। आपके परिवार या स्थानीय परंपरा के अनुसार आप विधि में सुधार कर सकते हैं।



तुलसी विवाह:-

तुलसी विवाह की कथा। (Tulsi Vivah Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक राक्षस था जिसका नाम जालंधर था. वह बहुत ही शक्तिशाली था, उसे हराना आसान न था।  उसके शक्तिशाली होने का कारण था,  उसकी पत्नी वृंदा. जालंधर की पत्नी वृंदा पतिव्रता थी,उसके प्रभाव से जालंधर को कोई भी परास्त नहीं कर पाता था। जालंध का आतंक इस कद्र बढ़ा की देवतागण परेशान हो गए. जब कभी भी जालंधर युद्ध पर जाता था तो तुलसी भगवान् विष्णु की पूजा करने लगती थी, विष्णु जी उसकी सारी मनोकामना पूरी करते।

श्रीहरि ने तोड़ा वृंदा का पतिव्रता धर्म।

जालंधर से मुक्ति पाने के लिए देवतागण मिलकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उन्हें सारी व्यथा सुनाई. इसके बाद समाधान यह निकाला गया की क्यों न वृंदा के सतीत्व को ही नष्ट कर दिया जाए।. पत्नी वृंदा की पतिव्रता धर्म को तोड़ने के लिए भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण कर वृंदा को स्पर्श कर दिया।. जिसके कारण वृंदा का पतिव्रत धर्म नष्ट हुआ और जालंधर की शक्ति क्षीण हो गई और युद्ध में शिव जी ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।

वृंदा ने दिया विष्णु जी को श्राप।

वृंदा विष्णु जी की परम भक्त थी जब उसे ये पता चला कि स्वंय विष्णु जी ने उसके साथ छल किया है तो उसे गहरा आघात पहुंचा. वृंदा ने श्री हरि विष्णु को श्राप दिया कि वे तुरंत पत्थर के बन जाएं. भगवान विष्णु ने देवी वृंदा का श्राप स्वीकार किया और वे एक पत्थर के रूप में आ गए. यह देखकर माता लक्ष्मी ने वृंदा से प्रार्थना की कि वह भगवान विष्णु को श्राप से मुक्त करें।

क्यों होता है शालीग्राम जी और तुलसी का विवाह।

वृंदा ने भगवान विष्णु को तो श्राप मुक्त कर दिया लेकिन, उसने खुद आत्मदाह कर लिया। जहां वृंदा भस्म हुई वहां पौधा उग गया, जिसे विष्णु जी ने तुलसी का नाम दिया और बोले कि शालिग्राम नाम से मेरा एक रूप इस पत्थर में हमेशा रहेगा। जिसकी पूजा तुलसी के साथ ही की जाएगी. यही वजह है कि हर साल देवउठनी एकादशी पर विष्णु जी के स्वरूप शालिग्राम जी और तुलसी का विवाह कराया जाता है।.

तुलसी विवाह हिन्दू धर्म के अनुयायीयों द्वारा किया जाने वाला एक औपचारिक विवाह कार्यक्रम है जिसमें माता तुलसी (तुलसी नामक पौधे )का विवाह भगवान शालीग्राम (भगवान विष्णु के विग्रह रूप को कहा जाता है) के साथ किया जाता है। 

सामग्री लिस्ट;-पूजा में मूली, शकरकंद, सिंघाड़ा, आंवला, बेर, मूली, सीताफल, अमरुद और अन्य ऋतु फल चढ़ाएं जाते हैं। श्रृंगार के सामान, चुनरी, सिंदूर से तुलसी माता का श्रृंगार किया जाता है।

कैसे कराएं तुलसी विवाह ?


गमले के ऊपर गन्ने का मंडप बनाएं।फूलों की लड़ियों से मंडप को सजाएं। तुलसी के गमले को दुल्हन की तरह सजाएं।जहां विवाह कराना है वहां गंगाजल छिड़कें और फिर पूजा की चौकी पर तुलसी का गमला रखें। गमले में शालीग्राम जी को रखें। दूध में भीगी हल्दी शालीग्राम जी और तुलसी माता को लगाएं। विवाह की रस्में निभाते हुए मंगलाष्टक का पाठ करें। तुलसी को लाल चुनरी ओढ़ाएं. कुमकुम, मेहंदी, सिंदूर और विष्णु जी के शालीग्राम रूप को भाजी, बोर, मूली, आंवला अर्पित करें।कपूर की 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें और भोग लगाएं।जिसके बाद तुलसी को शालिग्राम की बाई और रखकर उन दोनों की आरती उतारे तपश्चात विवाह संपन्न होने की घोषणा करें।

तुलसी जी के आरती :- तुलसी महारानी नमो-नमो,हरि की पटरानी नमो-नमो।


तुलसी जी के विवाह की पूजा करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

लाल रंग के चुनरी;-तुलसी विवाह की पूजा कर रहे हैं तो ध्यान रखें कि तुलसी माता के पौधे पर लाल रंग की चुनरी जरूर चढ़ाएं।

तिल अर्पित करें:-तुलसी जी के विवाह में तिल का उपयोग करें। माता तुलसी का पौधा जिस गमले में लगा हो,उसमें शालिग्राम भगवान को रखें और फिर तिल चढ़ाएं।

दूध में भीगी हल्दी:-देवी तुलसी और शालिग्राम महाराज पर दूध में भीगी हल्दी को लगाएं। इसे तुलसी विवाह की पूजा में शुभ माना जाता है।

देवी तुलसी की परिक्रमा:-तुलसी विवाह के दौरान तुलसी के पौधे की 11 बार परिक्रमा करनी चाहिए। इससे वैवाहिक जीवन में खुशहाली बना रह सकती है। 

तुलसी पूजा मंत्र।

1.वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी, पुष्प-सारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी। एतन्नामाष्टकम् चैव स्तोत्रं नामार्थ संयुतम, यः पठेत तम च सपूज्य सोश्वमेध फलं लभेत्

2.महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते

कहते हैं इस मंत्र का जाप नियमित रूप से तुलसी के पत्ते या पौधे को छूते हुए करना चाहिए। मान्यता है इससे व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।शास्त्र के अनुसार प्रत्येक घर में माँ तुलसी की पूजा होना चाहिए

कल्कि मंत्र:जय कल्कि जय जगत्पते। पद्मापति जय रमापते।।




लेखक के बारे में:-
प्रबीर  एक भारतीय लेखक हैं। उनका जन्म भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल में एक उत्कल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी किताबें Amazon.com,flipkart.com और abebooks.com के जरिए बेची जाती हैं।12 लाख से अधिक 
 लोगों ने उनकी किताबें और लेख पढ़े हैं।
Prabir  is an Indian author who was born into a Utkal Brahmin family in the Indian state of West Bengal. He is known for his books, which are sold through Amazon.com, Flipkart.com, and Abebooks.com. Prabir is known for his genre/style of writing and has gained a dedicated following of readers who appreciate his unique perspective/engaging storytelling/etc. Prabir  has a passion for writing and has dedicated his career to creating engaging and thought-provoking works for his readers. His books and articles cover a wide range of genres and topics, and he is highly popular within the intellectual community for his contributions.


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